भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माता भक्ति / 10 / भिखारी ठाकुर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:36, 6 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भिखारी ठाकुर |अनुवादक= |संग्रह=मा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रसंग:

माता-पिता का ख्याल रखने से परिवार की श्रीवृद्धि होती है। पूरा परिवार सारी सुख-सुविधा सहज ही प्राप्त करता रहता है।

वार्तिक:

केहू कहे कि अपना जरूरत के बारे में कुछ ना कहलन।

चौपाई

दाम कमाई के भइलऽ भारी। घर में कलपत बा मतारी॥
चाहे खीसी देबऽ गारी। अमनख नइखे कहत ‘भिखारी’॥
खीसी भगबऽ टुटी गिरोह। एकर तनिको नइखे मोहं।
तोहरे खातिर बानी कहत। भइल बहुत दिन जवरे रहत॥
अब तक तनी ना सुधरल चाल। बार चढ़ा के भइलऽ भाल॥
माई-बाप से मूंदबऽ आँख। उड़े का बेरी कटाई पाँख॥
माई-बाबू से करबऽ छल। हवागाड़ी के बगदी कल॥
माई-बाबू से तुरबऽ नेह। नाहक भइल मानुस के देह॥
माई-बाप के करबऽ सुर। उजरी तहार छवलका घर॥
कहत ‘भिखारी’ कहना मानऽ। फैदा करी हित जानऽ॥
मातु-पिता के करबऽ सेवा। सभ दिन मिली सहज ही मेवा॥
कोठा-अमारी अजब बहार। बिसकरमा करीहन तइयार॥
पीताम्बर के छोड़ऽ जिकिर। रिधी-सिधी का होई फिकिर॥
सोना-चाँदी के मानऽ कंकर। एकर फिकिर करीहन शंकर॥
भात-दाल-तरकारी-घीव। खुशी से सब दिन भेजीहन शिव॥
दूध-मलाई आठो जाम। मान से भेजिहन राधेश्याम॥
अतना बात पर करिहऽ कान। बइठल मिली मगहिया पान॥

दोहा

चार पदारथ हाथ में आइल, छोड़ब मन बाड़ बउराइल
जिला छपरा में बा घर, गंगा जी का दीअर पर।