Last modified on 7 दिसम्बर 2017, at 21:10

देशांतर रेखा पर खड़ी अकेली / रूचि भल्ला

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:10, 7 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूचि भल्ला |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बीत रहा है जेठ का मौसम
मैं उंगलियों पर दिन गिनती हूँ बसंत के लौटने का
जैसे गरमी की छुट्टियों में चले आते हैं बच्चे
ननिहाल
कोयल भी चली आती है आम के पेड़ वाले
मायके में
मायका माँ-बाप भाई -बहन से ही नहीं होता
अपना शहर भी मायका होता है
मैं पुकारती हूँ इलाहाबाद
हाजिर हो जाती है जामुनी फ्राॅक पहने एक लड़की
सन् अस्सी का समय चला आता है उसके साथ
बालों की पोनीटेल बनाए
घर की छत पर टहलती वह लड़की
दोनों हाथों को आसमान की ओर उठाए
चाँद को देखते हुए पुकारती है
ओ ! अलफ़ान्सो ओ ! अलफ़ान्सो
देखी थी उसने जनरल नाॅलेज की किताब में
कभी हापुस आम की तस्वीर
चाहा था चखना उसका निराला स्वाद
इलाहाबाद में हापुस उतना ही दूर था
जितना भूपेन हजारिका के गाए गीत की तरह
तेरी ऊँची अटारी मैंने पंख लिए कटवाए
बड़ी होती लड़की फिर जान गई थी
चाँद चन्द्रमा को ही नहीं कहा करते
जो हाथ में न आए
जिस पर दिल चला आए
चाँद वही होता है
लड़की चाँद को देखती थी
उसे ओ! अलफ़ान्सो कह कर पुकारती थी
लड़की ने कभी नहीं देखा था बम्बई
बम्बई चाँद के पार की नगरी होती थी
यूँ तो लड़की मलीहाबाद भी नहीं गई थी कभी
पर मलीहाबाद चला आता था
दशहरी आमों का टोकरा सर पर उठाए
लड़की के पिता ने पहचान करवायी थी
दशहरी आम से
अम्मा ने सिखलाया था देसी -विदेशी तरीके से
आम को खाना
यूँ तो घर पर चौसा ने भी सिक्का जमाया था
पर हापुस की याद उगते चाँद के संग
चली आती थी
यह एक गुजरे वक्त की बात है
अब तो सन् 2017 का समय है
लड़की अब इलाहाबाद में नहीं रहती
सातारा जिले में रहती है
फलटन उसके कस्बे का नाम है
उसके घर के आँगन में ही अब
रत्नागिरी हापुस का पेड़ है
लड़की के दोनों हाथों में अब
दो-दो दर्जन हापुस आम हैं
लड़की उसे थाम कर खुशी से चिल्लाना चाहती है
ओ! अलफ़ान्सो
पर उसके शब्द लड़खड़ा जाते हैं
हापुस के मीठे स्वाद में डूबी जुबान से
निकलता है दशहरी आम का नाम
दशहरी आम के संग चली आती है
उस किताब की याद
लड़की चाहती है कहीं से हाथ लग जाए
वह जनरल नाॅलेज की किताब
जिसके पन्नों पर जिक्र था
सबसे मीठे होते हैं हापुस आम
वह किताब के पन्ने फाड़ कर पतंग
बना देना चाहती है
उड़ा देना चाहती है आसमान में चाँद के पास
चिल्ला कर कहना चाहती है चाँद से
कि किताब में लिखी हर बात सच नहीं होती
जैसे कि यह कविता भी उतनी ही झूठी है
जितना झूठ इस कविता की लड़की का नाम रुचि है