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दस्तक / तुम्हारे लिए / मधुप मोहता

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इससे पहले कि ये रात फिर बदले पहलू,
इससे पहले कि हर शम‘अ गुल हो जाए,
इससे पहले कि ख़्वाब की हर रंगीनी,
फिर सियह रात को ओढ़े, और सो जाए।

इससे पहले कि मैं-मैं और तुम-तुम न रहो,
इससे पहले कि हर हर्फ़ आँसुओं में धुले,
इससे पहले कि दिल पिघले, लहू हो जाए,
फिर से आँखों में उतर आए, सुर्ख़ हो जाए।

इससे पहले कि तुम उठो, फिर से खो जाओ,
इससे पहले कि सहर नींद के दर दस्तक दे,
इससे पहले कि कोई तुमसे-मुझसे कुछ कह दे,
ज़रा सा वक़्त है, आओ कि इश्क़ हो जाए।