भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़द्दोज़हद / सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:06, 10 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आह बरसाती रात
किसी के लिए मधुमास
भींगने और पुलकित होने का
अद्भुत वरदान
चाँद की लुकाछिपी में
असीमित भावनाओं का सुंदर ज्वार

उफ्फ बरसाती रात
कहीं जीवन हेतु संघर्ष अविराम
नदियों का राक्षसी उफान
और डूबा हुआ सारा घर-बार
सड़क पर सिमटाए अपना जहान
खाट-मचान पर शरण लिए इंसान
नीचे साँप की फुफकार
नीम हकीम डाक्टरों के लिए आई बहार

उफ्फ बरसाती रात
फिर वही पापी पेट का सवाल
आई तो थी दिन में
उड़नखटोले से राहत-सामग्री आज
कल फिर आए भी तो क्या
टूट पड़ेंगे और लूटेंगे बलशाली हाथ
जो जीतेंगे हमेशा की तरह सिकंदर कहलाएँगे
बहाएगी फिर से सपने चंगेज़ी धार

उफ्फ बरसाती रात
झींगुरों का अलबेला सिंहनाद
बड़े बन गए हैं बेजुबां
पर जनमतुए कहाँ मानते हैं
रह रहकर दूध के लिए अकुलाते हैं
माँ की सूखी छातियों की टोह लेकर झल्लाते
मचा रहे व्यर्थ ही शायद हाहाकार

ओह बरसाती रात
रोते-रोते लिपट जाएँगे
रात के चिथड़े-चिथड़े आँचल में
नहीं बची माँ के बेबस होठों पर
सुंदर लोरियों की सौगात

माँएँ आँसू पीकर जी ही लेंगी
व्रतों की आदत काम आएगी
पर सोच रही निष्ठुर बनकर
बेचेंगे गोदी के लाल अगर
तो देखेंगे हर साल
ऐसी कई-कई भयानक बरसाती रात
आएगा लीलने अजगरी सैलाब

झाँकेंगे हर बार
ऊँचे आसमानी खिड़कियों से
सफेद शहंशाह!