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बीते बहुत दिन / अमित कुमार मल्ल
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बीते बहुत दिन
लिखा नहीं एक शब्द
स्याही थी
खुली आँखे थी
पर लिखा नहीं एक शब्द
संवेदनाये थी
लबो पर ताला भी नहीं था
पर कहा नहीं एक शब्द
दुःख है
दुःख का कारण भी है
पर सहा नहीं एक शब्द
आदमी अब
भीड़ लगने लगा है
जिया नहीं एक शब्द
लगा लिया है
एक मुखौटा
न हँसता है
न रोता है
अपना हुआ नहीं एक शब्द।