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मैं शीशे का दिल / अमित कुमार मल्ल
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मैं शीशे का दिल हूँ, वो पत्थर की हवेली है
कैसे मैं कहूँ, उनसे मुझे प्यार करना है
मेरे ख्यालो से खुशबू सी गुजरती है
कैसे मैं कहूँ, उनको बाहों में समाना है
लहरों सा आना जाना, मुझको नही भाता है
कैसे मैं कहूँ, उनसे मिलना मिट जाना है
पलको पे बिठाए है, वो लोग सयाने है
कैसें मैं कहूँ, उनको हमदर्द बनाना है
तेरी निगाहों के थमने पे, दुनिया की निगाहे है
कैसे मैं कहूँ, उनको आँखों मे समाना है