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रविवार और माई : तीन / इंदुशेखर तत्पुरुष

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माई करती है इंतजार
रविवार का
बड़े धीरज के साथ
लग ही जाएगी इस बार शायद
चश्मे की टूटी डंडी,
बेअसर हो रहा है ईसबगोल
और बाय का तैल इन दिनों
जाना है फिर से वैद्यजी के पास
स्कूटर पर बैठकर बेटे के साथ।

समचार भी तो ले जाना है
जाकर गंगा-भायली के घर
अबके आयी है गांव से बेटे के पास
पूरे चार बरस बाद इलाज करवाने
शहर के दूसरे छोर पर है
राधे का मकान

हर बार की तरह
माई करती है इंतजार
रविवार का बड़े धीरज के साथ।