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राग-विराग : पांच / इंदुशेखर तत्पुरुष

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शिशिर की गुनगुनी धुप
उलीच-उलीच कर
माटी सने हाथों से
जो हमने लगाई थी वह बगिया
अब हमको उजाड़ देनी होगी
उन पौधों को जड़ से उखाड़ देना है
जो हमने चुन-चुन कर रोपे थे हिल-मिल।
अन्ततः थक-हारकर
यह निर्णय कर चुकने के बाद
असंभव था मेरा ईमानदार बना रहना
और तुम्हारी निगाहों से बचकर
मैंने छुपा लिया चुपचाप
बगिया का वह सबसे हरा पौधा
जो तुमको सर्वाधिक प्रिय था
और सहेज कर रख लिया
जीवन के अंतिम क्षणों के लिए जैसे
सहेजकर रखा जाता है तुलसी-गंगाजल

मैं यह सोचकर सिहर उठता हूं
कि कहीं तुमने भी मेरी तरह कोई
बेईमानी तो नहीं की होगी।