ये तुम्हारी किस्मत है प्यारे ईश्वर!
कि एक प्याला कड़क चाय की ताज़गी
देह के स्पर्श की आंच
रोटी का भराव आकंठ पेट में
सम्मान पत्रों की रुपहली कलई
उतर जाती... थोड़ी ही देर में
और गहृर-गर्त, मन के-प्राण के
रह जाते खाली के खाली
वर्ना, पूछता ही कौन तुमको!
सच बताऊं
तुम्हारी जगह मैं होता
तो कविता से कुछ न कुछ ईर्ष्या तो
जरूर रखता।