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जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे / वली दक्कनी

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जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे

उसे ज़िन्दगी क्यूँ न भारी लगे


न छोड़े महब्बत दम—ए—मर्ग लग

जिसे यार—ए—जानीं सूँ यारी लगे


न होए उसे जग में हरगिज़ क़रार

जिसे इश्क़ की बेक़रारी लगे


हर इक वक़्त मुझ आशिक़—ए—पाक कूँ

पियारे तेरी बात प्यारी लगे


‘वली’ कूँ कहे तू अगर एक बचन

रक़ीबाँ के दिल में कटारी लगे