भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डर / पंकज सुबीर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:09, 30 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज सुबीर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुढ़ाते हुए चाँद से पूछा मैंने
क्या तुम्हें भी लगता है डर?
चाँद मुस्कुराया
बोला
दोस्त...
हर चलती हुई चीज़ को लगता है डर
कहीं किसी भी क्षण
अचानक रुक जाने का डर...