भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीआ / महेंद्र 'मधुप'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:20, 3 जनवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेंद्र 'मधुप' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दीआ अपना के ज़रा के
दोसरा के ईंजोर पहुँचबइअ
ई बात सब केउ जनइअ
अंतिम समय अबते-अबते
दीआ टिमटिमाए लगइअ
आ भभक जाइअ
आ जीवन परकास बाँटे वाला
दोसरा के रस्ता देखाबेवाला
अंत में ख़तम हो जाईअ
इहे जिनगी के खेल हए
ए दुनिया में जे अबइअ
ओकरा जाए के जरूर परइअ
ऊ कबो बच न सकइअ।
आदमी जब ए पर धेआन देइअ
त। दीन-दुखिआ के सेवा करइअ
ओकर समय अकारथ न जाइअ
जे आदमी समाज के लेल मरइअ
उहे आदमी, आदमी कहबइअ
बरइत दीआ इहे कहइअ।