भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इंतज़ार / सरोज सिंह
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:56, 23 जनवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अकसर इंतज़ार की दहलीज़ पर
अपनों के लौट आने का
होने लगता है एतबार
जैसे कि जाती हुई नदी
आती हूँ कहकर
पर्वत, घाटियों से होती हुई
फिर लौट आती है सावन में
पर अफ़सोस
इस तरह हमेशा
कहाँ लौट पाते हैं सब
"अभी आता हूँ"
कहकर जाते हुए लोग!