भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन के फागुन / सरोज सिंह
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:31, 23 जनवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhojpu...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अबकी बसंत जइसे ही
सुगबुगाइल बा
उठे लागल बा हियरा में
फगुनई बयार
गाछ से झरत पतई
करे लागल बा
समहत के तईयारी
टेसू नऊनिया नियर
कुल्ल्हड़ में...
घोर रहल बिया आलता
आमवा के माथ पs
बन्हा चुकल बा मऊर
गेना दुआर पs
सजा देले बा बनरवार
बेला-चमेली
इतरदान से
छिरिक देले बिया सुगंधी
कोयल,पपीहवा मगन
गा रहल बा सत्कार में फाग
बंसवारी में बयार मुग्ध मगन
छेड़ चूकल बा बांसुरी के तान
फाग के ई राग़ में
मनवा के ढोल-मजीरा
जोह रहल बा ऊ जोगी के
जे अबके फागुन गाई
"अहो जोगिनिया...अईनी हम छोड़ के
सहरिया के नवकरिया तोहरे कारन"
जोगीरा सा रा रा रा रा!