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हे विहंगिनी / भाग 8 / कुमुद बंसल

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71
मन अधीर,
मेघ-घोष गम्भीर,
फेनिल धार,
बरसे चहुँओर
जल से सराबोर।

72
झुरमुटों में
बजे पहाड़ी धुन
अधर हिलें
है प्रेम-अभिसार,
मादक छाँह चिनार।

73
चिनार वृक्षों
पर बरसे थी बर्फ,
घुली-जमी थी
चमके-दमके थी
चाँदनी-सी फिसली।

74
है मधुमास
मधु की टकसाल,
सजी बारात
खिले रंगीन सुमन
गन्ध-गुथी पवन।

75
भीग गया है
वन का हर कण,
उमगे चीड़
खुश हैं गिरिजन,
धरा की सौन्धी गन्ध।

76
पीला गर्दीला,
तूफानी-सा गगन
गरजे रौंदे
पशु-पक्षी निर्बल
कम्पित मेघदल।

77
मौन अधर,
खिली-धुली चाँदनी
गिरि-कुंजर,
हौले से पास जाऊँ,
श्वासों की ओट लिये।

78
नवांकुरित
मृदु-हरित धान,
सीढ़ीनुमा-से
खेतो में फैली शान,
गिरि-सूर्य हैरान।

69
सर्दी की रातें
ठहरी हुईं बातें,
हाँफता चाँद
बढ़ती ठिठुरन,
सागर-तट मन।

80
बड़ी-सी झील
जल उसका नील
हंस तैरते,
सर्वश्वेत बहार
निस्तब्ध हैं चिनार।