भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी पहचान / अनुपमा तिवाड़ी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:12, 11 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुपमा तिवाड़ी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे माथे पर बिंदी न देख
कुछ आँखें पूछती हैं
तुम मुसलमान हो?
पैरों में बिछुए न देख
पूछती हैं
तुम कुवाँरी हो?
पूजा न करते देख
पूछती हैं
तुम आर्यसमाजी हो?
तुम नास्तिक हो?
मैं धीमे से कहती हूँ
मैं प्रकृति की कृति हूँ
पर, उन आँखों में किरकिराहट आ जाती है
और, वे अपने जेब में रखे बिल्लों में से
एक बिल्ला मेरे माथे पर चस्पा कर देती हैं
मेरे लिए मुश्किल होता है
उन आँखों को कहना कि
तुम भी सबसे पहले यही हो
बस यही
बाकी सब बाद में
पर शायद वो बना दी गई हैं
पहले ये सब