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इश्क़ ने बर्बाद कर दी ज़िन्दगी, हाए रे इश्क़ / विजय 'अरुण'

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इश्क़ ने बर्बाद कर दी ज़िन्दगी, हाए रे इश्क़
कम हुई फिर भी न उसकी दिलकशी, हाए रे इश्क़।

तैरता ग़म के समुन्दर में हो जैसे कोई शख़्श
और मुट्ठी में हो उसकी हर ख़ुशी, हाए रे इश्क़।

एक दिल आशिक़ का है और तंज़ के सौ तीर हैं
फिर भी होंटों पर है उस के इक हंसी, हाए रे इश्क़।

धूप खुशियों की है बेशक हर तरफ फैली हुई
आँख आशिक़ की है फिर भी शबनमी, हाए रे इश्क़।

'हाँ! मुझे भी तुम से उल्फ़त है' ये सुनने के लिए
ऐ 'अरुण' इक उम्र मैं ने काट दी, हाए रे इश्क़।