भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरा मिलना है मिलना ख़ुशी का / विजय 'अरुण'
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:06, 22 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय 'अरुण' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तेरा मिलना है मिलना ख़ुशी का
और मक़सद भी क्या ज़िन्दगी का।
जिस ने बरसों मुझे ताज़गी दी
वो था झोंका तिरे हुस्न ही का।
ले पहन ले लिबास-ए-मुहब्बत
छोड़ चोला निरी दोस्ती का।
तेरा चन्दन का टीका पुजारन
तेरे माथे पै चंदा का टीका।
मैं ये समझा बजी तेरी पायल
क्या छनाका था तेरी हंसी का।
ऐ 'अरुण' जब भी वह सामने हों
शग़्ल चलता रहे दिलकशी का।