भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आईने को भी सताया कीजिये / सूरज राय 'सूरज'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:48, 26 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरज राय 'सूरज' |अनुवादक= |संग्रह=ए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आईने को भी सताया कीजिये।
रोज़ इक चेहरा दिखाया कीजिये॥

लाफ्टर क्लब में हँसी की ख़ुदकशी
पत्थरों को ही हंसाया कीजिये॥

दोस्तो की दुश्मनी के सूद में
दूध साँपों को पिलाया कीजिये॥

ज़र अगर किरदार के सर पर चढ़े
फ़र्श पर सिक्के नचाया कीजिये॥

बीज हैं अल्फ़ाज़ के लहज़े का हल
फ़स्ल ख़ुशबू की उगाया कीजिये॥

कुछ रगें गर्दन की हैं खुद्दार सी
हर जगह सर मत झुकाया कीजिये॥

बात हो गर फ़र्ज़ की ईमान की
शर्त काँटों से लगाया कीजिये॥

जुगनुओं पर दबदबा बन जायेगा
बस क़सम "सूरज" की खाया कीजिये॥