भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लुटेरों ने चलो धोखाधड़ी की / सूरज राय 'सूरज'
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:14, 26 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरज राय 'सूरज' |अनुवादक= |संग्रह=ए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
लुटेरों ने चलो धोखाधड़ी की।
पुलिसवालों ने लेकिन क्या कमी की॥
मेरे बेटे अभी सपनों की रख ले
कहाँ से लाऊँ मैं खुशियाँ सही की॥
शरीफों की कलाई नप रही है
खरीदी हो रही है हथकड़ी की॥
यही है फ़लसफ़ा हम सरफिरों का
मुहब्बत की ख़ुदा की बन्दग़ी की॥
बहुत-सी जेब सिलवाने लगे हो
सुना है जेब काटी है किसी की॥
मेरे दिल हो गया क्यों तू पराया
बता! मैंने कभी कोई कमी की॥
सफ़र अंतिम तेरे बेटे का है माँ
ज़रूरत है तेरी शक्कर-दही की॥
अंधेरों आओ अब आया है "सूरज"
चिराग़ों से बड़ी दादागिरी की॥