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आपसे कुछ भी गर छुपाएँगे / सूरज राय 'सूरज'

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आपसे कुछ भी गर छुपाएँगे।
आईने को क्या मुँह दिखाएँगे॥

आसमाँ जो था, है, रहेगा वही
सैंकड़ों पंख फड़फड़ाएँगे॥

आज चोरी करेंगे सोचा है
ख़ुद को ख़ुद के लिए चुराएँगे॥

नींद आ जाना गर मिले फ़ुर्सत
साथ में चन्द पल बिताएँगे॥

आज बेटी की उठ रही मैयत
लोग कल उँगलियाँ उठाएँगे॥

रात यादों की हो गई लम्बी
दर्द ओढ़ेंगे ग़म बिछाएँगे॥

जेब में तो छुपा लिये जुगनू
आप "सूरज" कहाँ छुपाएँगे॥