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ध्वाखा / रमई काका

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हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा!

 [१]

हम गयन याक दिन लखनउवै, कक्कू संजोगु अइस परिगा।
पहिलेहे पहिल हम सहरु दीख, सो कहूँ–कहूँ ध्वाखा होइगा—
जब गएँ नुमाइस द्याखै हम, जंह कक्कू भारी रहै भीर।
दुई तोला चारि रुपइया कै, हम बेसहा सोने कै जंजीर॥
लखि भईं घरैतिन गलगल बहु, मुल चारि दिनन मा रंग बदला।
उन कहा कि पीतरि लै आयौ, हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा॥

 [२]

म्वाछन का कीन्हें सफाचट्ट, मुंह पौडर औ सिर केस बड़े।
तहमद पहिरे कम्बल ओढ़े, बाबू जी याकै रहैं खड़े॥
हम कहा मेम साहेब सलाम, उई बोले चुप बे डैमफूल।
'मैं मेम नहीं हूँ साहेब हूँ' , हम कहा फिरिउ ध्वाखा होइगा॥
 [३]

हम गयन अमीनाबादै जब, कुछ कपड़ा लेय बजाजा मा।
माटी कै सुघर महरिया असि, जंह खड़ी रहै दरवाजा मा॥
समझा दूकान कै यह मलकिन सो भाव ताव पूछै लागेन।
याकै बोले यह मूरति है, हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा॥

 [४]

धँसि गयन दुकानैं दीख जहाँ, मेहरेऊ याकै रहैं खड़ी।
मुंहु पौडर पोते उजर–उजर, औ पहिरे सारी सुघर बड़ी॥
हम जाना मूरति माटी कै, सो सारी पर जब हाथ धरा।
उइ झझकि भकुरि खउख्वाय उठीं, हम कहा फिरिव ध्वाखा होइगा॥