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कुछ अच्छे लोग / निवेदिता झा

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जंगल आग ज़मीन
नदी ताल, महुआ
खुखरी शहतूत और बकरियाँ
यही है कहानी उनकी

अक्षर से जोडते
कोयला बाँस माँदर
ढूंढते अपनापन
और मिले बिना शर्त के स्नेह
महज इनके साथ जी लेते हैं जीवन वो

पत्थर ही पत्थर
और भींगते पसीने
चितकबरा रंग लिए
एक प्रणाली लकडी से कोयले तक
और साथ में कुछ उनकी अस्थियाँ

धरती के गर्भ से ही बाहर आये
उपेक्षित हैं आज भी शायद
चले भी मात्र चार कदम
बहला ले इन्हें प्यार के दो बोल
और फिर सुनले इनसे एक मुंडारी गीत

दुनिया में बचे कुछ
अच्छे लोगों को कहते हैं
आदिवासी!