अन्नपूर्णा... अन्नपूर्णा / मुक्ता
काशी की अन्नपूर्णा मंदिर की ड्योढ़ी की बगल में बैठी
झक्क गोरी
चमकीली आँखों वाली
टुकनी देवी की झुर्रियों में
अटके हैं अनगिनत वर्ष
आसपास के शोरगुल से बेखबर
खुद में खोई हुई
टुकनी देवी की आँखों में कई रंग आते-जाते रहते हैं
दुख गहराता रहता है
आमादा रहता है उमड़ने पर सागर
बचपन की यादें तैरती हैं छपाछप
मारती हैं पींगें झूले पर हरी-लाल-नारंगी
सखियों सहेलियों के संग
उदास टुकनी देवी सारी लहरें भर लेती हैं
अपने आँचल में
इस पार लहरें उस पार लहरें और
बीच में एक विस्थापित द्वीप-
कोसों दूर से बह कर आया
टुकनी देवी उस द्वीप पर रोपतीं हैं स्वप्न वृक्ष
टाँकती हैं उन पर सोन चिरैया और...
झलमला उठतीं हैं सीपियां...
अब बस कलरव है... झलमल है सीपियों की
(उन्हीं में रूपांतरित विपन्न अन्नपूर्णा।)