पीर सब अपनी भुलाना चाहती हूँ 
हर खुशी दिल से लगाना चाहती हूँ 
आज जो चाहे  हमारे साथ आये
राह मैं अभिनव बनाना चाहती हूँ 
घिर रहा हर ओर है भीषण अँधेरा
स्नेह का दीपक  जलाना चाहती हूँ 
हो नहीं निष्फल किसी की साधना अब
मैं   सफलता-फल  उगाना  चाहती हूँ 
मत करे अब बात कोई दहशतों की
देश  में सुख  शांति लाना चाहती हूँ 
फिर सभी मिल जिंदगी के गीत गायें
फूल खुशियों के  खिलाना  चाहती हूँ 
विश्व गुरु बन हो प्रतिष्ठित देश अपना
बस  यही   वरदान   पाना  चाहती  हूँ 
अब न फिर छाये तिमिर रातें अँधेरी
चाँदनी  को  नित  बुलाना  चाहती हूँ 
रूठने पाये न हम से अब विधाता
इस तरह उसको मनाना चाहती हूँ