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साँवरे कन्त का आगमन हो गया / रंजना वर्मा
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साँवरे कन्त का आगमन हो गया
शीश जब भी झुकाया नमन हो गया
कर्म जो भी किये सौंप तुझ को दिये
पाप का धर्म से संतुलन हो गया
हैं यहाँ पर न गंगा न रवि की सुता
नेह-जल से मगर आचमन हो गया
श्याम मथुरा गये छोड़ ब्रज भूमि को
द्वारिका फिर वहाँ से गमन हो गया
छोड़ यमुना का जल प्यार की भावना
सिन्धु में किसलिये अवतरण हो गया
थी यशोदा की ममता न राधा सखी
विश्व की नीति का विस्फुरण हो गया
नीतियाँ स्वार्थ छू कर बदलती रहीं
धर्म के कर्म का आकलन हो गया
पाप का नाश कर धर्म रोपा मगर
कृष्ण का विश्व से संतरण हो गया