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साँवरे को दिल चुराना आ गया / रंजना वर्मा

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साँवरे को दिल चुराना आ गया
प्रेम की वंशी बजाना आ गया

रात मावस की अँधेरी में भी अब
पाँत दीपों की सजाना आ गया

खा रहा नवनीत मटकी फोड़ कर
गोपियों का मन लुभाना आ गया

राधिका सन्देश भँवरे से कहे
साँवरे को भूल जाना आ गया

रोज वो भेजे हवा को द्वारिका
पर उसे करना बहाना आ गया

साँवरे को भूल वो सकता नहीं
है जिसे भी दिल लगाना आ गया

अब धरा के अश्रु थमते ही नहीं
याद तुमको ही बुलाना आ गया

तीर यमुना के रचाया रास जब
याद फिर गुजरा जमाना आ गया

तुम हमारे हो यही हूँ जानती
बस इसी से गुनगुनाना आ गया