भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अँधियारे से डर रक्खा है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:28, 3 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=गुं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अँधियारे से डर रक्खा है
अपने साथ सहर रक्खा है
मिले न मंजिल खत्म न हो जो
उस का नाम सफ़र रक्खा है
बेटी की खुशियों की ख़ातिर
छाती पर पत्थर रक्खा है
एहसासों की खुशबू से ही
हम ने दामन तर रक्खा है
कोई कुछ भी कहे बेटियों
को हमने बेहतर रक्खा है
बीते दिन प्यारी यादों को
इस सीने में भर रक्खा है
उड़ न सकेगा मन का पंछी
हम ने पंख कतर रक्खा है