भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मगध नमन / कृष्णदेव प्रसाद
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:17, 11 अप्रैल 2018 का अवतरण
मइया मगध तोरा सीस नमामूं।
की राज, की जल, वायु अकास की, आग की
हम सबके गुन गामूं ॥1॥
सीस धरूं जखनी धरती पर
‘‘कहां? कहां?’’ रव तोरे सुनामूं
चट चट मइल भरल देहिया के
तोरे रज से मइंजि छुड़ामूं ॥2॥
तोरे जल से धोके नहाके
गर्भजनित सब पाप नसामूं
सेंक बदन सउरी के अगिया
तोरे आग से सीत बचामूं ॥3॥
तोरे बायु से सांस देआ हम
अप्पन तन के पुष्टि बढ़ामूं
तोरे अकास में ‘बा, बा’ करके
बोलिया में तोरे ठोर हिलामूं ॥4॥
रहूं सदा गोदिये में तोरे
कहअ कइसे तोर गुन बिसरामूं
ई नर जन्म बितो हम्मर प्रभु
कृष्णदेव तोहरे हितकामूं ॥5॥