चिट्टी लिखलन घर से दादा / सच्चिदानंद प्रेमी
चिट्टी लिखलन घर से दादा
पूछलन कैसन कट रहलो हे
इहाँ शहर में अपन जिन्दगी?
उहाँ तो पंखा ऐसी न´ हो
ऊलर-कूलर के भी जरूरत
इहाँ दूपहर में भी न´् हो
खटिया पर सुत जाही ले के
सहिये सांझ चद्दर तकिया।
झुर-झुर बदन सर सिहरावऽ हे
पुरवईया आ सगरी रतिया।
कइलु भईया रात-रात भर
अभियो घर-घर देहथ पहरा
अभियो देवीथान के कुईया
भरऽ हो सोलह गाही गगरा
नहिये छनलो हे अभियो तक
गाँव में ताड़ी दारू दोना।
बेटी बहु के कलरब से हौव
झनकदार घर आँगन कोना।
अमियो डँगरा तर बगिया में-
लगा रहल बुतरून अमझोरा,
झूम रहल बगिया के पानी
पछिया में भी कन-कन सोरा
अभियो पगड़ी धारी बाबा
के बेटा जोड़ऽहथ रिस्ता
आपस में भईया आउ भौजी
दीदी फूआ चाची रिस्ता
अभियो राम चरितर काका
भाखऽथ लाठी के भाषा
अभियो सैयद फिदा हसन से
बड़ी लगल हो गाँव के आसा
एक्के गो कारन हौ एकर
इहाँ न घुसलन कोई नेता
तोड़ तड़ंगा आग लगावे
ओइसन बरजित नाता गोता।
अच्छा अब तू अपन सुनाबऽ
ई सब हमतो गाइयो गेलूँ
हँस गा के दिन कट रहलो हे
रात महिना बच्छर गइलूँ
अभियो छोड़ऽ मोह सहर के
आबऽ गाँव में गीत सुनाबऽ
या सहर में उधम कर के
नऽ भरल तू गाँव बसाबऽ