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धीरे-धीरे गोरी चल / जयराम सिंह

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धीरे-धीरे गोरी चल डगरिया
गगरिया कहीं छलक न जाय।

(1)
एकरा में भरल हको नेहिया के पानी,
अंग-अंग छहरल चढ़ल जुआनी,
घइलवा से देले गल बहियां गुजरिया,
लचकऽ हे लौगिया सन पतर कमरिया,
अँचरा से छिपा ले नजरिया,
विजुरिया कहीं झलक न जाय,
धीरे-धीरे गोरी चल डगरिया।
गगरिया कहीं छलक न जाय॥

(2)
पियवा पिआसल तोर बटिया निहारे,
गदरल जुआनी देखी मोहना पुकारे,
सोरह वरिश के, ई जुलुमी उमरिया,
तीरवा से तींख जादे तिरछी नजरिया।
पिया बिनु रतिया पहड़िया सेजरिया कहीं लहक न जाय॥

(3)
केंसिया से करे अठखेलिया पवनवां,
बदरा से निकलल चंदा सन बदनवां,
देखि के सुघड़ रूप मोही जाहे मनवां,
जाल में फंसावे जैसे मछली मदनवां,
चम-चम चमके सुरतिया।
इंजोरिया कहीं बिदुक न जाय॥
धीरे-धीरे गोरी चल डगरिया।
गगरिया कहीं छलक न जाय॥