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मनवां में गुदगुदिया ना / जयराम सिंह
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लैलक फागुन के महीनवां मनुवॉ में गुदगुदिया ना
(1)
ई फागुन के अइते ही बदलल हावा के चलिया,
भौरा भुनर-भुनर गीत गावे बिहॅसे सिर धुन कलिया,
बेधल कामदेव के बान से केकरो नञ सुधबुधिया ना।
लैलक फागुन ... गुदगुदिया ना॥
(2)
गेहूँम, तीसी, बूंट, केरईया के डिडिया गदरा गेल,
मदमस्ती से मातल नेहिया धरती पर छितरा गेल,
जादू के कमाल ऐसन कि पत्थलों में सुगबुगिया ना।
लैलक फागुन ... गुदगुदिया ना॥
(3)
धरती सज-धज बनल बहुरिया पेन्हलक हरियर साड़ी,
ऊ सड़िया पर फूल के बूटा चकमक करै किनारी,
एक रूप से जे नञ अघाल नञ ओकरा,
कुछ लुरबुधिया ना।
लैलक फागुन ... गुदगुदिया ना॥