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अपनी कहो कहानी! / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'
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अपनी कहो कहानी!
कितनी जुटी हृदय में ज्वाला,
कितना पड़ा आस पर पाला,
धूँआ बनकर, बोलो कितना उड़ा नयन का पानी!
अपनी कहो कहानी!
निज अधरों के बीच अनकहे-
कितने ज्वालामुखी रह गये!
कितनी साधें कुचलीं-जो जातीं न तनिक पहचानी!
अपनी कहो कहानी!
बोलो, कितनी धूल हृदय की-
झंझाओं में उड़ी प्रणय की?
दृग में शरद् बदलियों-सी सुधि कितनी शेष पुरानी!
अपनी कहो कहानी!
तारों की छाया में मधुमय-
कहो, क्या हुए नूतन निश्चय?
मन का क्या आधार आजकल? क्या निठुराई ठानी?
अपनी कहो कहानी!
चाँद उग रहा, स्तब्ध गगन है,
चिथड़े-से घन, मन्द पवन है!
ऐसी रजनी में न चाहिए, मन की बात छिपानी!
अपनी कहो कहानी!