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इन्दर काहे करऽ हँ मनमानी / दीनबन्धु

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इन्दर काहे करऽ हँ मनमानी, मरलूँ बिन पानी।
रोपाल धाना सब, कुह कुह के मरलइ,
बुतरु फलिस्ता ई, धू-धू के जरलइ,
खाली उपरें उपर काट´, चानी ई छूछ बैमानी॥
सावन पनिएँ बिन, जरलूँ धूँअइलूँ,
कयसूँ कयसूँ करके, धरती सजइलूँ
तोर हँथिए करऽ हई सैतानी, ढहउ तोर जुआनी॥
बादर बन गड़ गड़ खाली ढोल पीट´ ,
पिआस मेटावे ले, तूँ थूक छीट´,
गदिए बइठल तूँ छाट´ फूटानी, धिरीक जिनगानी॥
गिरहस तपसी के, तोरा हाय परतउ,
पाप के लतरी, खाली साप फरतउ,
अइतउ फेन ऊ हावा तूफानी, भूलइतउ नादानी॥