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कौमी जोश (ग़ज़ल) / अछूतानन्दजी 'हरिहर'
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ज़िन्दगी है जो हो खूँ, जोश जिगर में कौमी।
मुर्दा समझो जो हो गर, होश न नर में कौमी॥
लब पर सदा कौम के हो, जाप भी हर दम कौमी।
मुँह से गर निकले भी मजमूँ तो ज़िकर में कौमी॥
भोज में, शादी-ग़मी में, जहाँ भी हों इकजा।
गीत गर नारियाँ गावें, तो हर घर में कौमी॥
ज़िक्र हर बात में हो जात का पुर-राम कौमी।
कहानी किस्से में हर फर्दो बशर में कौमी॥
कथा व पाठ भजन में, भी हो कौमी उपदेश।
ज्ञान और भक्ति जो कुछ हो "हरिहर" हो कौमी॥