स्त्रियाँ / अनन्या गौड़
जीर्ण शीर्ण अट्टालिकाओं की
भित्तियों पर
अजंता-एलोरा की गुफाओं में
उकेरी सुन्दर नक्काशी में
नजर आती है
स्त्रियों की विभिन्न भाव भंगिमाएँ
स्मित बिखेरती मुद्राएँ
सतरंगों में लिपटी पेंटिंग्स,
सुर्ख रंगों में चमकते नयन
अधखुले अधरों से बहता मधुर रस!
खुले स्याह केश!
मन को वीरान टापू पर
लिए जाते हैं
लेकिन
इन बदरंग भित्तियों के गर्भ में लुप्त
भीगी पलकों के कोर पर ठहरी अश्क की बूँदें
अदृश्य ही रह जाती है!
नयनाभिराम चित्रों के
सतरंगी रंगों में छुपा
श्र्वेत-श्याम रंग
कहाँ नजर आता है!
चकाचोंध में जहान की
हजारों दर्शक रूपेण चक्षु
प्रकाश
ही देखना चाहती हैं
अंधकार नहीं!
सुनो!
प्राचीन और आधुनिक स्त्रियों!
तुम सिर्फ़
सजावट का सामान हो!
विज्ञापनों का आधार हो!
सौंदर्य का बाज़ार हो!
सुनो स्त्रियों
अधरों को सिल लो
मजबूत इक धागे से
केवल मुस्कुराओ,
खिलखिलाओ!
क्योंकि
तुम्हारी ये उन्मुक्त हँसी
सबको सुकून जो देती है...