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सुबह-सुबह यह पक्षी / सुनीता जैन

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सुबह-सुबह यह पक्षी
क्यों रोता है?
क्या कहता है?

क्या कहने को इसकी
किसी जन्म में
बची रह गई बात

जिसको करता याद,
बुलाता रो-रो कर
मीत किसी अपने को?

या यह सब
मेरा अपना
इस पर आरोपित है?

पक्षी तो शायद
केवल गाता है
यों गा-गा कर
सोए हुए पलाशों,
सेमल और ढाकों को
बतलाता है
कि जीवन का
ऋतु से कुछनाता है

या यह भी तो संभव है
कि इतने सब ईंट-पत्थरों से
घिरा बेचारा,
हेर किसी जंगल को
यह जंगल-राग
सुनाता है

न रोता
न गाता पक्षी,
बस अपने सुर से
अपना मन बहलाता है!