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जी करता है / सुनीता जैन
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जी करता है,
क्या कभी
तुम्हारा भी?
पेड़ों के नीचे
फिर टाट बिछे,
मास्टर जी कुर्सी पर
बैठे हों
और स्लेट पर
एक दूनी दो
दो दूनी चार
लिख-लिख के
रटते हों
कौए की जब
बींठ गिरे तो
पीछे उसके
भगते हों
भूल गए यदि कभी पाठ तो
कनखी-कनखी
तकते हों
मिली अगर
‘शाबाश’ पीठ पर
गुब्बारे-सा
फूल गए दिखते हों
जी करता है!