भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिर फाग फागुन के / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:57, 16 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता जैन |अनुवादक= |संग्रह=यह कव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फिर फाग फागुन के
फूल फूल छींटे
रंग रंग गाए
फिर पात यौवन से
डाल डाल ऐंठे
खुल बूर बौराए
चटके पलाश जंगल
सरसों बैठी बटने
ढलता सूरज
कटे पतंग ज्यों
शाम चली सी गौने