भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक सलोना बादल / सुनीता जैन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:18, 16 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता जैन |अनुवादक= |संग्रह=यह कव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक सलोना बादल छाया,
धुआँधार बरस कर
चला गया खाली-सा

ये खड्डे और खाई,
सहसा भर गए गले तक,
फिर वैसे ही सूख गए
पहले-सा

लेकिन जो भीतर
खींच लिया,
अंतस तक अपना
सींच लिया,

उस जल से
जल हो गई धरती

बाँहों में बादल
भींच लिया।