भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जड़ / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:29, 16 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता जैन |अनुवादक= |संग्रह=यह कव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
काट दिया तरु
क्योंकि
हानि की आशंका थी
घर को,
छत को, उस से
खेला गया
खूब बढ़ा घर
किन्तु जीर्ण हुई छत
बरखा, सहते-सहते
पूछ रही,
तरुवर क्या तुम,
मुझे
क्षमा कर दोगे?
मौन रही वह धरती
जिसमें,
कटे तरु की
दुखती जड़ थी
जाने कितने युग से