भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहो अनन्त हो / सुनीता जैन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:38, 16 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता जैन |अनुवादक= |संग्रह=यह कव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम दूर-दूर से
कसो,
वाद्य पर तार-सा

कहो
अनन्त हो,
प्राण से प्राण सिक्त होने का
सुयोग

पूछो नहीं,
कब,
कहाँ,
किस रूप में?

बस, रहो!