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त्रिशूल / सुनीता जैन
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ऐसा कौन-सा
अपराध है
जिसकी मैंने
कभी न कभी
कल्पना नहीं की?
पर सोचने
और करने के बीच
खड़े मिले, तुम
त्रिशूल से
और इस तरह
फैसला होता गया कि
सड़क पर
किस तरफ
मेरे पैर थे