भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घड़ी की दुकान / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:39, 21 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त देवलेकर |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
घड़ी की दुकानों में
समय नई-नई पोशाकों में
पोज़ देता है
(गतिशीलों को पोज़ देने की फुर्सत नहीं)
रुकी घड़ियाँ दिलासा हैं
कि समय अभी शुरू हुआ नहीं
घड़ी एक गुल्लक है
जिसमें भरी है
समय की काल्पनिकता
अगर इस दुकान में बेहिसाब समय भरा है
तो मुमकिन है, बुज़ुर्ग किसी रात लूट ले जाएँ
अपनी घड़ी मिलाने के लिए
ये जगह अत्यंत भ्रामक
एक तश्तरी में
पुर्ज़ा-पुर्ज़ा खुली घड़ी कहती है-
समय और घड़ी दो असंगत चीज़ें हैं
घड़ी की मरम्मत संभव है,
समय की नहीं