भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुलाई / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:10, 21 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त देवलेकर |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आमों से सिंहासन छीनने लगे हैं जामुन
कैलेंडर के पलटे हुए पन्नों में
दब गई हैं कोयल

ताज़े खिले फूल हैं किताबें
सफ़ेद पंखुड़ियों की सुगंध से
निढाल पड़े विद्यालयों की चेतना लौटी है

धूप वैशाख के खंडहर की ध्वस्त खिड़की
प्रवासी पक्षियों की तरह आए हैं बादल
यह उनके प्रजनन का समय है

युवा ख़ून की तरह बहता पानी
जुलाई की नसों में
हर्ष से विस्मित रोम हैं घास
राष्ट्रीय रंग की तरह पसरा है ‘हरा’

छत पर बंधी रस्सियाँ
कर्फ़्यूग्रस्त सड़कें हैं
बूंदों के अंडों से निकलते हैं
मेंढकों के बच्चे

बारिश जुलाई का आवास है।