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नाम / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

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कितना अच्छा हो
कि हमारे नाम न हों
चलो, अगर हों तो
हम पूछें नहीं किसी से
और न बताएं अपने
मिलें जब अजनबी लोगों से
नाम
बिना किसी आहट
एक पक्ष और एक विपक्ष का
तर्कहीन खेमा बाँटने लगते
सारी राजनीति हमारे नामों से शुरू होती है