भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जात के पानी / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:22, 24 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा प्रसाद 'नवीन' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक बात कहियो?
सागर में
डुबकी लगाबै ले पड़तो
अउ
अपन अंतरात्मा के
जगाबै ले पड़तो
देखऽ हा नै
बाबू साहेब के
फुलवारी में कुइयाँ
जहाँ
नै घैला चढ़ऽ हो
न टुइयाँ
ओजा भरल जा हो
दरबारी कलसी
जहाँ रगड़ल जा हो
सोना के मलसी
ई जात अर पात
अलग कैने हो
तोहर पानी अ भात