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भुरूकवा उगत / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

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जिहवा पर के नोन
अब घाव पर उतरै बाला हे
समझ लिहा कि
देस के दसा अब सुतरै बाला हे
हम ढिढोरा तो नै पीट सकऽ ही
हम सिंघा बजा सकऽ ही
द्रौपदी के
साड़ी खिंचै बाला के
सारा सजा सकऽ ही
धक... धक... धक
करेजा करऽ हो
तब तो कोमल हो
कोय दुस्मन से दोमल हो
हम तोहर हित हियो
हतास होला से की
ऐसै बढ़रायल नै रहतो बाढ़र
तनी बतास होला से की
केतना दिन सकबा
उगवे करतो भुरूकवा
तोहर पेट के आग
उठ के चल चुकलो हे