Last modified on 24 अप्रैल 2018, at 14:23

बोल के कही / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:23, 24 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा प्रसाद 'नवीन' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक दिन
तोहर बोली के कहर
बदल देतो गाँव अउ सहर
कही नरमी
कही तेजी ने रहतो
दुख जे बरदास्त करो
वैसन कोय अंगेजी नै रहतो
तोहर खून
जब साफ हो जैतो
ऊ दिन
इनकलाब हो जैतो
ई तो कहो की चाहऽ हा
अपन घर के लंका
तो अपनै काहे डाहऽ हा?
बिछल एही घर में
खटिये तो चाहऽ हा
बेटी के बिआह में
लखपतिये तंहू चाहऽ हा
तब ने मरऽ हो
दस बीस के कहो
केतना बेटी रोज जरऽ हो
इहे सब पाप
तोरा कैने कमजोर हो
ओकरे छिपैने हा
मन में चोर हो
जे दिन
गरिबका सब जोर लेवा गांठ
ऊ दिन
निकल जैतो दूध से मांठ