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आजादी सौ कोस / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

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कभी जिंदगी में सोचला हे कि
देस कइसे बनऽ हे?
तों तो सब दिन
ऐना पर इहे देखला हे कि
भेस कैसे बनऽ हइ
सजा रहला हे
अपन देस देख के
तनी नै लजा रहला हे
एक से दू
दू से चार बनाबै में
तों बिसित हा
तों अप्पन करनी से
चारो खाना चित हा
दोसी तोरा छोड़ के
हमरा कोय नै जनाबऽ हो
तों सब सह रहला हे
ऐसन संतोसी
कोय नै जनाबऽ हो
एतना कहला पर
लोग हमरा पर भन-भना हइ
लेकिन हमरा तो इहे जना हइ
कि सब हमरे दोस हइ
ईहे से
हमर घर से
आजादी सौ कोस हइ